नई दिल्ली , संजय बर्मन: ग्रामीण क्षेत्र, शहरी क्षेत्रों के मुकाबले हमेशा ही सरकारी व अन्य मूलभूत सुविधाओं के मामले में पीछे रहे हैं। यहां तक की उन्हें अधिकतर सुविधाओं के लिए शहरों व दूरदराज इलाकों का ही रूख करना पड़ता है। चाहे वह परिवहन सुविधाओं का मामला हो, शिक्षा का, चिकित्सा का व अन्य सरकारी सुविधाओं का। इसी क्रम में नरेला ग्रामीण क्षेत्र की बात की जाए, तो यहां के ग्रामीणों ने कई वर्षों पहले अपने इलाके के युवक – युवतियों के लिए इस ग्रामीण क्षेत्र में ही एक कॉलेज का सपना देखा था, जिसे वास्तविकता में बदलने के लिए ग्रामीणों ने अपनी ज़मीन तक दान में दी, लेकिन आज तक वहां कोई कॉलेज नहीं बन सका और ग्रामीण छात्र आज भी दूरदराज के इलाकों के कॉलेजों में पढ़ने के लिए मजबूर हैं।
नरेला स्थित मामुरपुर गांव के प्रधान सुंदरलाल ने सिंघु बॉर्डर के समीप 93 बीघा ज़मीन 1969 में स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज समिति को कॉलेज खोलने के लिए दान में दिया। उनकी दूरगामी सोच थी, कि नरेला एक ग्रामीण क्षेत्र है और यहां के छात्र - छात्राओं के लिए उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए कॉ
लेज की स्थापना कराया जाना आवश्यक है, लेकिन कई दशक बीतने के बावजूद भी आज तक किसी सरकार द्वार उस ज़मीन पर कॉलेज नहीं बनाया गया। कॉलेज खोलने के लिए स्थानीय सामाजिक संस्थाओं ने सरकार और कॉलेज समिति से काफी पत्राचार किया, लेकिन आज तक वह उन्हें इस कार्य में सफलता नहीं मिल पाई। इसी कड़ी में बांकनेर रेजीडेंसियल वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव सुंदरलाल खत्री ने 13 मार्च 2020 को नरेला में कॉलेज खुलवाने के लिए पीएमओ कार्यालय से भी गुहार लगाई और अनुरोध किया कि नरेला में ही एक कॉलेज की स्थापना की जाए, जिससे यहां के ग्रामीण छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण कर सके। लेकिन यहां से भी सिर्फ निराशा ही हाथ लगी।
इसमें गौरतलब तथ्य यह है कि पूर्व सांसद उदित राज ने भी नरेला उपनगर में कॉलेज खोलने के लिए संसद में प्रश्न उठाया था। सुंदरलाल खत्री का कहना है कि सभी शिकायतों को उठाकर कॉलेज समिति के पास भेज दिया गया था, लेकिन कॉलेज समिति के पास एक ही रटारटाया जवाब है, कि यूजीसी कॉलेज बनाने के लिए ग्रांट नहीं दे रही है। एक तरफ तो दिल्ली सरकार नए कॉलेज खोलने की बात करती है, तो दूसरी तरफ जमीन ना होने का बहाना कर केंद्र सरकार के पाले में गेंद डाल देती हैं, जबकि नरेला में वर्ष 1969 से 93 बीघा ज़मीन कॉलेज के लिए खाली पड़ी है। जिसकी आज तक चारदीवारी भी नहीं की जा सकी है।
Post a Comment