AI पत्रकार बनने से बेहतर है दुकानदार या प्लंबर बन जाओ!

नई दिल्ली (नरेन्द्र) यदि आप पत्रकार हैं या पत्रकार बनना चाहते हैं, तो एक बात कान खोलकर सुन लीजिए—प्रेस रिलीज़ को कॉपी-पेस्ट करके, दो लाइन इंटरनेट से चुराकर और AI को प्रॉम्प्ट देकर “खबर” तैयार करना पत्रकारिता नहीं है। ये तो बस की-बोर्ड पर उंगलियाँ घिसने का काम है, जिसे कोई भी दसवीं पास लड़का पंद्रह मिनट में सीख लेगा।

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जिस न्यूज़ रूम में आपको दिन भर “अच्छा प्रॉम्प्ट लिखो” कहकर बिठाया जा रहा है, वो असल में आपकी कुर्सी ख़ाली करने की ट्रेनिंग ले रहा है। आप उसकी जगह लेने वाले टूल को ही ट्रेन कर रहे हैं।सच्ची पत्रकारिता बिल्कुल उलटी दिशा में चलती है। वो आपको धूप में तपने, बारिश में भीगने, लोगों के झूठ पकड़ने, उनके घर तक जाने, उनकी आँखों में देखकर सच निकालने के लिए मजबूर करती है। वो आपको सोचने, शक करने, सवाल पूछने और जवाब न मिलने पर फिर पूछने की आदत डालती है। यही वो काम है जो आज नहीं तो दस साल बाद भी कोई मशीन नहीं छीन सकती।

हाँ, इसमें पसीना ज्यादा बहता है। जूते ज्यादा घिसते हैं। रातें ज्यादा लंबी होती हैं। लेकिन इसी में वो स्वाद है जो आपको ज़िंदा रखता है। और अगर आपका काम अब सिर्फ़ प्रॉम्प्ट लिखना रह गया है, तो याद रखिए—एलन मस्क और जेनसन हुआंग बार-बार कह चुके हैं कि आने वाले दौर में सबसे सुरक्षित नौकरियाँ हाथ के काम वाली होंगीː प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, राजमिस्त्री, किसान। जिनके हाथ गंदे होते हैं, उनकी नौकरी कोई AI नहीं छीन सकता।

अगर पत्रकारिता भी महज़ प्रॉम्प्ट लिखने की नौकरी बन गई, तो वो कभी उस “सुरक्षित” लिस्ट में जगह नहीं बना पाएगी।इसलिए ऐसा रास्ता चुनिए जो आपको इंसान बनाए रखे, जो आपको बार-बार बाहर निकालकर धरती की मिट्टी सूंघने पर मजबूर करे।

कड़वा लगे तो लगे—लेकिन प्रॉम्प्ट-इंजीनियर बनकर मर जाने से कहीं बेहतर है कि पाइप ठीक करना सीख लो, किसी का घर बनाना सीख लो, या खेत में हल चलाना सीख लो। कम से कम शाम को थककर जब सोने जाओगे, तो पता तो होगा कि आज कुछ असली किया है।

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